नोएडा : दिल्ली की चकाचौंध और आपाधापी के बीच कुछ ही सालों पहले एक नए शहर ने जन्म लेना शुरू किया. ऊंची ऊंची इमारतों और बड़े-बड़े मॉल के साथ ही चौड़ी सड़कों और राजधानी के ट्रैफिक को मुंह दिखाता ये शहर लोगों को और खासकर उनको बेहद पसंद आना शुरू हुआ जो दूसरे शहरों से राजधानी की तरफ दो जून की रोटी के लिए पहुंच रहे थे. जेब को सुहाते यानि अफोर्डेबल फ्लैट्स लोगों का आशियाना बनना शुरू हो गए. बड़ी-बड़ी एमएनसी कंपनियों ने भी अपना ठिकाना इसी शहर को बनाया. नतीजतन यहां पर बिल्डरों ने एक के बाद एक गगनचुंबी इमारतों का निर्माण शुरू कर दिया. देखते ही देखते ये शहर मानो भारत का हॉन्गकॉन्ग बन गया. इस शहर का नाम है ग्रेटर नोएडा (वेस्ट). कंपनियां आईं, लोग आए और उनके पीछे-पीछे आनी शुरू हुईं समस्याएं. पहले तो ये समस्याएं सड़कों, बिल्डरों की ओर से दी जाने वाली निर्माण क्वालिटी या फिर अधूरे प्रोजेक्ट्स में फंसे लोगों के पैसों को लेकर ही थीं. इन समस्याओं को सरकार ने या फिर खुद लोगों ने भी सुलझाना शुरू कर दिया लेकिन अब कुछ ऐसी समस्याएं भी सामने आने लगीं जिनका इलाज मिलना या दिखना मुश्किल होता दिखने लगा. ऐसी समस्याएं जो यहां रह रहे लोगों ने ही जन्मी थीं. ऐसी समस्याएं जिनका हल पैदा करने वालों के पास भी नहीं था और एक दूसरे का सिर धुनने के अलावा अब कोई चारा सा नहीं दिखता है.
पीड़ित का पक्ष रखने के एवज में मोटी रकम की फिराक
ऐसी ही कुछ समस्याओं के सामाने आने के बाद कई तरह की संस्थाओं और संगठनों ने भी जन्म लेना शुरू कर दिया. इन संगठनों का काम कथित तौर पर नेतागिरी कर ऐसी समस्याओं को सुलझाना था। इसी के साथ कई नए मीडिया संस्थान और पत्रकारों ने भी इस नए शहर में जन्म लेना शुरू किया. इन समस्याओं को चोटी पर पहुंचा कर यानि हाईलाइट कर इन्होंने पेश किया. यहां पर ये साफ करना जरूरी है कि इन मीडिया संस्थानों या पत्रकारों में सभी ऐसे नहीं थे जिन्होंने गलत काम की ओर रुख किया लेकिन बड़ी संख्या में ऐसे थे जिन्होंने समस्याओं या झगड़ाें की इस आग में अपनी रोटियां सेकना भी शुरू कर लिया. अब रोटियां सेकने का मतलब समझाना जरूरी नहीं क्योंकि इतना तो पाठक समझदार हैं हीं. फिलहाल एक ऐसी ही समस्या जिसमें कुछ कथित पत्रकारों ने अपनी रोटियां सेकना शुरू किया इतनी तेजी से खबरें आग की तरह फैलीं कि पेट्रोल छिड़कने की भी जरूरत नहीं लगी.
इस कथित पीड़िता महिला पर कई तरह के जुल्म हुए थे और इन्होंने भी कई लोगों पर आरोप लगाए थे
कुछ समय पहले एक मामला देश भर के मीडिया में ज्वलंत हो चला. एक फ्लैट के बुजुर्ग मकान मालिक व उनकी पत्नी अपने ही फ्लैट को खाली करवाने के लिए सड़क पर धरना देते दिखे. इस दौरान एक महिला का नाम सामने आया. बताया गया कि ये महिला फ्लैट खाली नहीं करना चाहती हैं. खैर बात इतनी बढ़ी कि मीडिया के साथ ही पुलिस, लोकल नेता और सोसायटी से जुड़े लोगों के हस्तक्षेप के बाद महिला को आखिर फ्लैट खाली करना पड़ा. मामले की कुछ और तह तक जाने के बाद पता चला कि महिला को न सिर्फ अपने मकान मालिक से परेशानी थी बल्कि वो तो खुद एक पीड़िता थी. इस कथित पीड़िता महिला पर कई तरह के जुल्म हुए थे और इन्होंने भी कई लोगों पर आरोप लगाए थे. खैर कुछ ही समय बाद ये मामला रफा दफा हो गया या ये कहें कि फ्लैट खाली होने के बाद इसमें कोई मसाला न दिखा तो रोटियां सेकने वाले किनारे हो लिए और वो संगठन जो फ्लैट ओनर्स के लिए बने है, जिन्हे इसमें कोई फायदा नज़र नहीं आया, वो कोसो दूर हो लिए ये कहते हुए के कीचड़ में पत्थर कौन मारे।
कथित अबला का कहना है इस दफा इनके छोटे बच्चे को सोसायटी मेंटेनेंस के लोगों ने सताया है
अचानक 2025 यानि नए साल के आगाज के साथ ही फिर कथित पीड़िता का नाम तेजी से व्हाट्सएप और सोशल मीडिया के दूसरे प्लेट्फॉर्म्स पर दमक कर सामने आया. अब इस अबला और इनके छोटे बच्चे को सोसायटी मेंटेनेंस के लोगों ने सताना शुरू कर दिया. इतना सताया कि घर की बिजली काट दी, पानी बंद कर दिया, यहां तक कि छोटे बच्चे की साइकिल तक चोरी हो गई (हालांकि साइकिल बाद में सोसायटी में ही पड़ी मिली जो इनका बेटा ही खेलते खेलते दुसरे टावर के नीचे छोड़ आया था). मामला गर्मा गया, एक तो अकेली महिला और ऊपर से ऐसे जुल्म. फिर एक बार खेला शुरू हो गया. मीडिया का और तो और नेतागिरी का भी. इधर अबला भी सबला हो चली. मेंटेनेंस वालों से उन्होंने भी दो दो हाथ करने की ठान ली और लो कांच का दरवाजा ही तोड़ दिया, कुछ न होता देख लैपटॉप फैंक दिया फिर भी कुछ न हुआ तो इन्होंने गाली गलोच और हाथा पाई का रास्ता भी अपनाया.
पुलिस समझाइश लगी फालतू, पुलिस पर चलाये लात घूंसे
अब बारी थी हमारी काबिल पुलिस के हस्तक्षेप की.पुलिस आई मामले को समझा और महिला के खिलाफ शिकायतों का पुलिंदा देख समझाइश की कोशिश की. लेकिन अबला से सबला हो चुकी महिला जो कि पहले से ही पुलिस से शायद कुछ नाराज थी, उसने पलटवार कर दिया. कानाफूसी से पता चला कि महिला ने एक पुलिसकर्मी से भी अभद्रता (हाथापाई) कर डाली. महिला कांस्टेबल के बाल नोंच डाले। इसके बाद पुलिस ने महिला को गिरफ्तार कर लिया. कुछ दिन की सरकारी हवा महसूस करने के बाद महिला की जमानत हो गई और अब एक बार फिर सबला ने अबला का चोगा धर लिया.
कुछ न होते दिखा, तो चलो धरना देते है
अबला अब धरना देने पहुंच गई उस जगह जहां पर देशभर के लोग पहुंचते हैं. अन्ना भी यहीं पहुंचे थे और देश की सरकार को हिला कर रख दिया था. अबला का धरना शुरू हुआ दिल्ली में. यहीं पर कुछ कथित पत्रकारों की नजर इस मुद्दे पर पड़ी और समय आ गया रोटियां सेकने का. लेकिन यहीं पर कुछ विराम देते हैं और पहले इस पूरे मामले के सच को जानना शुरू करते हैं कि आखिर ये कहानी सही में एक अबला को प्रताड़ित करने की थी या कुछ और ही खिचड़ी पक रही थी. दरअसल ये मामला शुरू हुआ जब एक दिव्यांग मकान मालिक ने अपनी बूढ़ी मां के आखिरी समय में खून पसीने की कमाई का फ्लैट खाली करवाने की दरखास्त पीड़िता से कर दी. इसके पीछे की कहानी भी ये थी कि पीड़िता समय पर किराया नहीं दे रही थी और दो महीने से तो दे ही नहीं रही थी. बस फ्लैट खाली करवाने की बात पर तो पीड़िता भड़क गई. इन्होंने सोसायटी में मेंटेनेंस टीम से उलझना शुरू किया. इस दौरान इन्होंने एक कर्मचारी का लैपटॉप तोड़ दिया. फिर सोसायटी का गेट, जब मेंटेनेंस ने इसका भुगतान मांगा तो वे अड़ गईं. परेशान कर्मचारियों ने बिजली के प्रीपेड बिल में इस भुगतान को समायोजित करना चाहा लेकिन पीड़िता ने इसे भी नहीं भरा और बिजली नियमानुसार ऑटोमैटिकली ही कट गई. अब पीड़िता ने अबला का चोला थोड़ा और कस लिया, मीडिया से संपर्क कर कहानी को थोड़ा ट्विस्ट कर दिया. लेकिन कुछ पत्रकार समझदार थे दोनों पक्षों को सुनने की बात कर दी. अब जब दूसरा पक्ष सुना तो पीड़िता को अबला समझने वालों को ये सूझते देर न लगी कि ये मामला जो दिखाया जा रहा था वो नहीं है. इसी बीच पीड़िता ने कई लोगों को अपनी शिकायतों का शिकार बना डाला. इनमें कुछ मेंटेनेंस के गरीब कर्मचारी थे, कुछ सोसायटी के लोग, कुछ वे जो महिला का विरोध कर रहे थे और कुछ सोसायटी के लोग. पुलिस के पास शिकायत पहुंची तो कार्रवाई होनी थी. कुछ गिरफ्तार भी हो गए.
रोटी सेकने वाले पत्रकारों का एकतरफा पक्ष
चलिए अब फिर मुद्दे पर आते हैं. रोटियां सेकने वाले पत्रकारों में से एक इनके साथ हो लिए और शुरू हुआ इंटरव्यू का खेल. अबला की परेशानियों को किया गया उजागर. लेकिन खेल ये नहीं था, असली खेला शुरू हुआ जब दूसरे पक्ष के लोगों ने (जिनके खिलाफ महिला मैदान में कूदी थीं) अपना पक्ष भी बताने की इच्छा जाहिर की तो उनके साथ तो बड़ा धोखा हो गया. उनसे कथित तौर पर पैसे मांगे गए, विज्ञापनों की मांग की गई. फिर जब तफ्तीश की गई तो मामला गंभीर होता दिखा. एक कथित पत्रकार जो महिला के साथ निरंतर बने हुए थे वे पीड़िता के उसी फ्लैट में उनके साथ रहने लगे जिसको खाली करवाने को लेकर सारा प्रपंच हुआ, पुलिस जब बयान लेने पहुंची तो पत्रकार पलंग पर बैठ राजमा चावल खाते दिखे. महिला व पत्रकार खुशमिजाजी के साथ टहलते भी दिखे.
पीड़ित तो वकील भी था, नहीं हुई आखिर तक सुनवाई
बार बार पीड़ित वकील जिन्हे इस अबला से असली शिकायत थी, जिसने बार बार इनके साथ अन्याय किया था और बार बार मीडिया पुलिस के पास जाकर इनके खिलाफ लिखवाया था, को बड़ा सदमा पहुंचा जब उन्होंने देखा के सिर्फ अपार्टमेंट टाइम्स ने सारे पक्ष रखे है पीड़ित के, अबला के, फ्लैट ओनर के, पुलिस के, मेन्टेन्स के. जब उन्होंने ये बात इन पत्रकार को कही, तो उन साहब ने इनसे कहा के फ्लैट मैं खाली करवाने का दम रखता हूँ, पचास हजार का इंतजाम कर दो. जब वकील ने कहा के मेरा पक्ष रख दो पहले हमारी भी तो सुनो तब मोटी रकम मांगी गई.तो अन्य वेब पोर्टल ने कहा के तुम्हारा पक्ष आ जाएगा, शिवरात्रि का बधाई संदेश दे दो पहले.
निराला एस्टेट सोसाइटी ने दी पुलिस में लिखित शिकायत
जिस पत्रकार की हम बात कर रहे है, वो एक निजी यूट्यूब चैनल में पत्रकार है. इस पत्रकार को अशोभनीय व्यव्हार करते हुए पाया गया है. अबला नारी और पत्रकार। जो उगाही कर रहे थे वकील से उनका पक्ष रखने के बाबत, अब इस महिला के साथ एक नहीं पिछले 20 दिन से करीबी बढ़ा रहे है। कभी कमरे के अंदर, बालकनी, लिफ्ट, लॉबी हर एक कोने में साथ पूरे 24 घंटे देखे जाते है. यह पत्रकार बिना किसी से अनुमति लिए पूरी सोसाइटी में गले में कैमरा लटकाये घूमता है. प्रीती गुप्ता जो अबला है, (!?) के साथ हर समय देखे जा रहे है। अन्य निवासी इनकी उल जलूल अशोभनीय हरकते देख बेहद परेशान है। खुदको पत्रकार बता कर बार बार मेन्टेन्स ऑफिस जाता है और अनैतिक मांग करता है. वो खुद को किसी मीडिया एजेंसी से जुड़ा हुआ बताता है और मेन्टेन्स विभाग को डराने की कोशिश करता है. बात बात पर वकील आशुतोष श्रीवास्तव को धमकाता है कि, तुझे दिल्ली जेल में बंद करवाऊंगा। कभी कहता है मेरी मिनिस्ट्री में अच्छी चलती है तुझे सबक सिखाऊंगा। इस पत्रकार को जब सोसाइटी में घूमने से रोका जाता है तो धमकाता है कि मैं प्रीति गुप्ता के साथ हूं। (जैसे प्रीती गुप्ता कोई माफिया है ! ? ) ताकि उसे सोसाइटी में घूमने दिया जाए.
इस कंप्लेंट के जाते ही पुलिस ने मेन्टेन्स विभाग को उचित निर्देश देते हुए कहा निश्चित होकर इसके आने जाने पर रोक लगाई जाए. अब ये बाध्य है और अंदर नहीं जा सकता.
निवासियों का कहना है ये पर्सनल मैटर बन गया है
इन हरकतों से निवासी इस हद के परेशां हुए, की उन्होंने लिखित शिकायत दी. अब उस पत्रकार का निराला एस्टेट में आना जाना बैन हो गया है. निवासियों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया – मोहब्बतें न देखनी पड़ जाए, इसलिए हमने लिफ्ट में जाना बंद कर दिया. कभी तो नीचे उतरेंगे ही. जब पार्क जाओ, ये आलिंगन करते दिखते। लॉबी में कुछ कर रहे होते और हमे देख सावधान हो जाते. ऐसे पत्रकार समाज के लिए हानिकारक है जो बयां लेने के बदले पर्सनल हो जाते है। बाद में सूत्रों से खबर मिली, इस पत्रकार ने जितने भी वीडियो बनाए थे, उन सब के बदले मोटी रकम ली थी गुप्ता से। हालांकि अपार्टमेंट टाइम्स इस बात से कोई मतलब नहीं रखता। लेकिन ये बताना इसलिए जरूरी है, की पीड़ित की सुनवाई जरूरी है। एक तरफा बनाए गए बिकाऊ वीडियो से किसी के साथ न्याय नहीं हों सकता है।

पत्रकार को किया गया निलंबित
पत्रकार को पेशे में एक मामले को पर्सनल बनाने के और सोसाइटी में उल जलूल हरकतें करने के लिए उनको चैनल से निष्कासित कर दिया गया है. निवासियों में ख़ुशी की लहर है. इस चैनल के संपादक का कहना है की जबसे प्रीति गुप्ता का मामला गरमाया है, हमारा रिपोर्टर का ऑफिस आना बंद हो गया। वो उसी जगह रहने लग गया। फोन का जवाब नहीं दे रहज़ उसके एक तरफा लिए इंटरव्यू से कॉल्स हमें मिल रही है पीड़ित पक्ष की। कॉल उठाता नहीं सिर्फ मैसेज से बात कर रहा है। इसकी गलती की सजा कंपनी क्यों भुगते ?

महिला के आंसू नहीं, मामले की सच्चाई देखिये
अब सभी बातें आपके सामने हैं. महिलाओं के साथ होती प्रताड़ना और उत्पीड़न का शिकार अबलाओं को सबला बनाने की इस देश में सबसे ज्यादा जरूरत है. लेकिन वूमैन कार्ड को खेल कर अपने मनसूबों को मुकाम तक पहुंचाने वालों के खेले में सच में जो पीड़ित हैं उनकी आवाज या तो दब जाती है या फिर बेअसर नजर आती है. अब आपको इस बात का फैसला खुद करना है कि इस पूरे कांड में महिला अबला है या फिर वो दिव्यांग मकान मालिक और उनके साथ पिस रहे सोसायटी मेंटेनेंस के कर्मचारी व सही गलत के लिए अवाज उठाते कुछ लोग पीड़ित हैं. मामला जरा टेढ़ा है फैसला सोच कर लेने की जरूरत है. फिलहाल इस कहानी को यहीं विराम, आगे की अपडेट भी जारी रहेगी.