Noida: जो लोग डायबिटीज़ के शिकार हैं, उन्हें इस मौसम में अपनी सेहत के प्रति सावधानी बरतने की आवश्यकता है। असल में, डायबिटीज के मरीजों में रोग प्रतिरोधक क्षमता स्वस्थ लोगों की तुलना में काफी कम होती है। इसलिए, उन्हें इंफेक्शन होने के साथ-साथ डेंगू का ख़तरा भी ज़्यादा रहता है।
फे़लिक्स अस्पताल के चेयरमैन डॉ डी. के. गुप्ता का कहना है कि डायबिटीज़ के मरीज़ों में ब्लड वेसल्स बहुत नाज़ुक हो जाती हैं। ऐसे में, ब्लड फ्लो का खतरा ज्यादा रहता है। यही कारण है कि डायबिटीज़ के मरीज़ों में डेंगू के लक्षण गंभीर हो सकते हैं। डायबिटीज़ मरीज़ों में डेंगू की स्थिति में इंटरनल ब्लीडिंग का रिस्क भी बढ़ जाता है। यही नहीं, डायबिटीज़ के मरीज़ों को डेंगू से रिकवरी में काफ़ी ज़्यादा समय भी लगता है। डेंगू होने पर मरीज़ का मेटाबोलिक रेट बढ़ जाता है। इससे ब्लड शुगर काफ़ी ज़्यादा फ्लक्चुएट करता है। डायबिटीज़ के मरीज़ को जब डेंगू हो जाता है, तो उनमें थ्रोम्बोसाइटोपेनिया यानी कम प्लेटलेट काउंट का ख़तरा बढ़ जाता है। इससे उनकी रिकवरी भी काफी धीमी हो जाती है। अनियंत्रित रक्त शर्करा के स्तर वाले लोगों को विशेष रूप से डेंगू की दुर्लभ जटिलताएँ, जैसे कि डेंगू शॉक सिंड्रोम विकसित होने का खतरा अधिक होता है। इससे उनमें तेज़ बुखार, लिवर को नुकसान और तेज़ ब्लीडिंग का कारण बनता है। डेंगू शॉक सिंड्रोम डेंगू की एक ऐसी स्थिति हैं जिसमें तेज़ बुखार आने लगता है और साथ ही नाक और मसूड़ों से खून बहने लगता है। इसमें लिम्फ और ब्लड कोशिकाओं को नुकसान पहुंचता है। डेंगू शॉक सिंड्रोम में पीड़ित मरीज की संचार प्रणाली खत्म होने लगती है। अगर इसे शुरुआत में ही कंट्रोल नहीं किया गया तो यह सदमे, तीव्र ब्लीडिंग से लेकर मृत्यु तक का कारण बनती है। डायबिटी रोगियों को बुखार आने को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए, अगर ब्लड शुगर कंट्रोल में नहीं है तो हल्का सा भी बुखार आने पर तुरंत जांच करानी चाहिए। ब्लड टेस्ट से डेंगू को शुरुआती दिनों में ही पकड़ा जा सकता है और इसे आउट ऑफ कंट्रोल होने से पहले ही रोका जा सकता है। डेंगू से बचने के लिए डायबिटीज़ पेशेंट को अपने ब्लड शुगर को कंट्रोल करना होगा ताकि इसकी गंभीर जटिलताओं के जोखिम को कम किया जा सके। साधारण डेंगू बुखार करीब 5 से 7 दिन तक रहता है जिसके बाद मरीज़ ठीक हो जाता है। ज़्यादातर मामलों में इसी किस्म का डेंगू बुखार पाया जाता है। इसमें ठंड लगने के बाद अचानक तेज बुखार होना, सिर, मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द होना, आंखों के पिछले हिस्से में दर्द होना, जो आंखों को दबाने या हिलाने से और बढ़ जाता है, बहुत कमज़ोरी लगना, भूख न लगना, जी मितलाना और मुंह का स्वाद खराब होना, गले में हल्का दर्द होना, शरीर, खासकर चेहरे, गर्दन और छाती पर लाल-गुलाबी रंग के रैशेज़ होता है। जबकि डेंगू हैमरेजिक बुखार (डीएचएफ) में नाक और मसूढ़ों से खून आना, शौच या उल्टी में खून आना, स्किन पर गहरे नीले-काले रंग के छोटे या बड़े निशान पड़ जाने के लक्षण दिखते हैं। डेंगू शॉक सिंड्रोम (डीएसएस) में तेज़ बुखार के बावजूद उसकी त्वचा का ठंडा होना, मरीज़ का धीरे-धीरे बेहोश होना, मरीज़ की नाड़ी कभी तेज़ और कभी धीरे चलने लगती है। उसका ब्लड प्रेशर एकदम लो हो जाने जैसै लक्षण दिखते हैं। अगर तेज़ बुखार हो, जॉइंट्स में तेज़ दर्द हो या शरीर पर रैशेज़ हों तो पहले दिन ही डेंगू का टेस्ट करा लेना चाहिए।
घर पर करें ये जरूरी काम
-बॉथरूम में टब या फिर बाल्टी में पानी जमा करके न रखें।
-बच्चों को पूरी बाँह के कपड़े पहनाएं और शाम के समय पार्क या फिर बाहर जाने से रोकें।
-डेंगू के मच्छर जलभराव वाली जगह पर पनते हैं इसलिए डेंगू के अटैक से बचने के लिए बेहद जरूरी है कि मच्छरों को बढ़ने से रोकने के उपाय किए जाएं।
-घर में मच्छर अधिक होने पर सोते समय मच्छरदानी का प्रयोग करें और अपने गमलों के आसपास पानी न जमा होने दें. संभव हो तो पेड़ पौधों को कुछ दिनों तक सूखा रखें।